जालौन के कोंच नगर में 121 वर्षों से हर तीन साल बाद होने वाली मां हुलका देवी बड़ी पूजा भाद्र पक्ष के अंतिम शनिवार को 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं की मौजूदगी और कड़ी सुरक्षा के बीच निकाली जा रही है। मां हुलका देवी की भव्य शोभायात्रा का डोला मालवीय नगर स्थित लाल हरदौला से दोपहर 12 बजे उठाया गया, जो 5 किलोमीटर चलकर ग्राम पड़री स्थित हुल्का देवी के मंदिर पर पहुंचेगी, जो तांत्रिक अनुष्ठान के साथ ग्राम पड़री में समाप्त होगी।
बुंदेलखंड की प्राचीन लोक परंपराओं में शुमार मां हुलका देवी की शोभायात्रा नगर के मालवीय नगर में स्थित लाला हरदौल के मंदिर से प्रारंभ हुई। लगभग 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के बीच शोभायात्रा नगर के मुख्य मार्ग से होती हुई देवी मां के जयकारे के साथ आगे बढ़ रही है।
तांत्रिक अनुष्ठान से होती है पूजा
यह शोभा यात्रा भारत माता मंदिर, स्टेट बैंक तिराहा होती हुई सागर चौकी स्थित लाला हरदौल के पास रुकेगी, जिसके बाद शोभायात्रा रेलवे फाटक, मारकंडेश्वर तिराहा होते हुए पड़री गांव में स्थित हुलका देवी मंदिर पर पहुंचेगी, जहां धार्मिक और तांत्रिक अनुष्ठान से पूजा संपन्न होगी। मान्यता है कि यह पूजा पूरे बुंदेलखंड के साथ नगर और क्षेत्र को महामारी, अकाल और आपदाओं से बचाती है। इस पूजा के आयोजन को 121 वर्षों से चली आ रही है और आज भी उसी आस्था और विश्वास के साथ इसका आयोजन होता है।
साल 1903 से होती आ रही है पूजा
वर्ष 1903 में जालौन जनपद के साथ पूरे बुंदेलखंड में भयंकर महामारी फैली थी। हालात ये थे कि श्मशान में अंतिम संस्कार करने के लिए जगह नहीं बची थी। कस्बे के नागरिक इस महामारी से इतना भयभीत हो गए थे कि अधिकांश घर खाली हो गए। कुछ ने अपने नाते रिश्तेदारों के यहां शरण ली, तो कई लोग बाहरी इलाकों में चले गए। इसी बीच दाढ़ी नाका स्थित महंतजी के बगीचे में नीबू के पेड़ के पास हुलका देवी ने एक कन्या का रूप धारण कर दर्शन दिए। उन्होंने कहा कि महामारी के डर से कोई भागे नहीं बल्कि उनकी विदाई करें। उसके बाद शिवरानी रायकवार, गंभीरा और गेंदारानी पर मैया की पहली सवारी आई और इस तरह पूजा का आयोजन हुआ। साथ ही जिले से महामारी भी चली गई।
पूजा में खर्च होता है काफी पैसा
तीन साल में एक बार आयोजित होने वाले मां हुलका देवी की इस बड़ी पूजा के आयोजन के पीछे बताया गया कि उस वक्त लोगों की हालत ठीक नहीं थी। हर साल इसका आयोजन कर पाना संभव नहीं हो पा रहा था। जिसके बाद हर तीन साल में इसके आयोजन की परंपरा बन गई।
बेसन से होता है मूर्ति का निर्माण
प्रत्येक तीन साल में आयोजित होने वाली बड़ी पूजा में मां हुलका मैया की प्रतिमा का निर्माण लगभग तीन किलो बेसन से किया जाता है। इसके अलावा हर पूजा में नए वस्त्रों और आभूषणों से माता को सजाया जाता है। लाला हरदौल मंदिर बजरिया में बड़ी पूजा के दिन पहला होम देकर यात्रा का मैया के रथ में जो दो बकरे जाते हैं, उनका रंग सुर्ख काला होना अनिवार्य है। ऐसे बकरे तलाशने में काफी कठिनाई होती है, लेकिन परंपरा के मुताबिक व्यवस्था कर ली जाती है।
डलिया में होती है मइया की विदाई
हुलका मैया की तीन साल में आयोजित होने वाली बड़ी पूजा यानि मैया की विदाई पूरी तरह से तांत्रिक अनुष्ठान है। इसमें वैदिक रीति नीति का कहीं भी प्रयोग नहीं है। कोंच नगर के महंत सुदर्शन पाणी दास के यहां से मां हुलका की विदाई के लिए डलिया बनाई जाती है। यह डलिया साल 1903 यानी 121 वर्ष से बनाई जा रही है। सुदर्शन पानी दास महंत ने बताया कि उनके दादा ने इस परंपरा की शुरूआत की थी। तब से यह परंपरा लगातार उनके यहां से निभाई जा रही है।